लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। विपक्ष और दलित समुदाय से जुड़े नेताओं का आरोप है कि अखिलेश यादव ने हमेशा से दलितों के हितों के खिलाफ काम किया है। उनका कहना है कि सपा प्रमुख ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के नाम पर चल रही कई योजनाओं को बंद कर दिया और चुनाव के समय उसी बाबा साहब के नाम पर वोट भी मांगे।
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह आरोप अखिलेश यादव की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाते हैं। उनका कहना है कि समाजवादी पार्टी ने सत्ता में रहते हुए बाबा साहब अंबेडकर की योजनाओं को स्थगित किया, जिससे दलितों की भलाई के लिए चल रहे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स प्रभावित हुए।
अखिलेश यादव हमेशा से दलित विरोधी रहे हैं। बाबा साहब के नाम से कई योजनाएं बंद कर दीं, और जब जरूरत पड़ी तो उन्हीं बाबा साहब के नाम पर वोट मांग लिया। ताज्जुब की बात तो यह है कि दलितों ने उन्हें वोट भी दे दिया।
— Rajat Mourya 🇮🇳 (@Therajatmourya) July 28, 2024
धन्य है मेरा समाज। pic.twitter.com/o5cL6Zr3Qc
इस संदर्भ में, कई स्थानीय नेताओं और समाजवादी पार्टी के विरोधियों का कहना है कि जब चुनाव का समय आता है, तो अखिलेश यादव बाबा साहब के नाम का इस्तेमाल दलित वोट बैंक को साधने के लिए करते हैं। इस मुद्दे को लेकर जनता में आक्रोश भी देखा जा रहा है।
हालांकि, यह भी सच है कि अखिलेश यादव ने अपनी सरकार के दौरान कई ऐसे काम किए हैं, जिनमें उन्होंने दलित समुदाय की समस्याओं को उजागर करने की कोशिश की है। लेकिन उनके विरोधियों का कहना है कि ये प्रयास केवल दिखावे के लिए थे और असल में कई योजनाओं को लागू नहीं किया गया।
इसके बावजूद, चुनावी विश्लेषण के दौरान देखा गया है कि दलित समुदाय ने अखिलेश यादव और उनकी पार्टी को समर्थन दिया है। यह एक बड़ा सवाल है कि दलित समुदाय द्वारा उनके प्रति इस समर्थन का कारण क्या है? क्या वे सच्चाई से अवगत नहीं हैं या फिर उनके लिए अन्य राजनीतिक विकल्प उतने सशक्त नहीं हैं?
समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के लिए यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा हो सकता है। यदि दलित समुदाय के प्रति उनके नजरिए को लेकर असंतोष बढ़ता है, तो इससे उनकी राजनीतिक स्थिति पर असर पड़ सकता है। इस मुद्दे पर भविष्य में और भी चर्चाएँ होने की संभावना है, जो आगामी चुनावों और राजनीति पर गहरा प्रभाव डाल सकती हैं।