नई दिल्ली: भारतीय बैंकों की नीतियों पर सवाल उठने लगे हैं, खासकर गरीबों के लिए। हाल ही में सामने आए एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के 12 सरकारी बैंकों ने पिछले एक साल में मिनिमम बैलेंस चार्ज के नाम पर करीब 8500 करोड़ रुपये वसूल किए हैं। यह राशि गरीब और मध्यम वर्गीय खाताधारकों पर आर्थिक बोझ डाल रही है, जिनकी आमदनी सीमित है और जिनके खातों में अक्सर न्यूनतम बैलेंस बनाए रखना मुश्किल होता है।
हालांकि, सरकारी बैंकों का कुल प्रॉफिट 2024 में 1,41,203 करोड़ रुपये था, फिर भी मिनिमम बैलेंस के नाम पर ग्राहकों से शुल्क वसूला जा रहा है। यह तथ्य इस बात को दर्शाता है कि बैंकों की वित्तीय स्थिति मजबूत है, लेकिन फिर भी उन्हें गरीबों से शुल्क वसूलने की आदत छोडऩे में हिचकिचाहट हो रही है।
मिनिमम बैलेंस चार्ज के चलते गरीब लोगों को विशेष रूप से कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। बहुत से लोगों की आमदनी इतनी कम होती है कि वे अपने खातों में हमेशा एक निर्धारित मिनिमम बैलेंस बनाए नहीं रख सकते। इस स्थिति में, बैंकों द्वारा पेनाल्टी लगाना, उनके लिए अतिरिक्त आर्थिक बोझ का कारण बनता है।
ये क्या हुआ सुशांत सिंहा को ?
— Dr Monika Singh (@Dr_MonikaSingh_) July 31, 2024
अचानक से पत्रकारिता कैसे करने लगा ये भई....🥺pic.twitter.com/sUvtb94eaS
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। यदि बैंकों के लाभ में वृद्धि हो रही है, तो मिनिमम बैलेंस चार्ज को लेकर नरमी बरतने की आवश्यकता है। गरीबों के जीवन को और कठिन बनाने के बजाय, बैंकों को उनके हित में नीतियां बनानी चाहिए।
वर्तमान में, एक गरीब व्यक्ति की स्थिति इतनी होती है कि वह अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करता है। बच्चों की पढ़ाई, खाना-पीना, और अन्य जरूरी खर्चों के बाद यदि उसके खाते में काम पैसा बचता है, तो बैंक पेनाल्टी के रूप में उस राशि को काट लेता है। यह स्थिति आर्थिक असमानता को बढ़ावा देती है और समाज में गहरी निराशा का कारण बनती है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा गरीबों से वसूली जा रही इस राशि की पारदर्शिता और नीति में बदलाव की सख्त आवश्यकता है। बैंकों को सामाजिक जिम्मेदारी निभानी चाहिए और गरीबों की आर्थिक स्थिति को समझते हुए उनके हित में काम करना चाहिए।