युद्ध के बाद राम ने सीता माता से क्यों कहा, "तुम चाहो तो सुग्रीव, विभीषण... के साथ चली जाओ

युद्ध के बाद राम ने सीता माता से क्यों कहा, "तुम चाहो तो सुग्रीव, विभीषण... के साथ चली जाओ




अयोध्या: रामायण का महाकाव्य, जिसे वाल्मीकि ने लिखा था, सदियों से भारतीय संस्कृति और साहित्य का अहम हिस्सा रहा है। इसमें कई घटनाएँ और संवाद हैं जो आज भी लोगों को चिंतन और मनन के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसा ही एक प्रसंग है जब भगवान राम ने लंका विजय के बाद माता सीता से कहा था, "तुम चाहो तो सुग्रीव, विभीषण के साथ चली जाओ।"

इस संवाद का संदर्भ और इसकी गहराई को समझने के लिए हमें उस समय की परिस्थितियों और भावनाओं को समझना होगा।

 प्रसंग का विवरण:

जब भगवान राम ने लंका पर विजय प्राप्त की और रावण का वध कर दिया, तब उन्होंने हनुमान जी को माता सीता को यह शुभ समाचार देने के लिए भेजा। माता सीता ने यह सुनकर प्रसन्नता व्यक्त की और उन्हें राम के पास ले जाया गया। राम ने सीता को पुनः प्राप्त किया, लेकिन इस प्रसंग में राम ने सीता की शुद्धता को लेकर समाज में उत्पन्न शंकाओं और धारणाओं को भी व्यक्त किया।

 राम का उद्देश्य:

राम का यह कथन कई गहरे अर्थों और उद्देश्यों से प्रेरित था:

1. समाज और धर्म की मर्यादा: राम एक आदर्श राजा और धर्म के पालनकर्ता थे। उन्होंने समाज की दृष्टि और नियमों का पालन करने के लिए सीता की शुद्धता की परीक्षा ली। यह संदेश था कि राजा और रानी दोनों को समाज के नियमों का पालन करना चाहिए।

2. सीता की स्वतंत्रता: राम ने सीता को विकल्प देकर यह संदेश दिया कि वे उनकी स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं। यह उनकी महानता और उदारता को दर्शाता है कि वे सीता को किसी भी प्रकार की बंधन में नहीं रखना चाहते थे।

3. आत्मविश्वास की परीक्षा: राम ने सीता को यह कहकर उनका आत्मविश्वास और अपनी शक्ति पर भरोसा जताने का अवसर दिया। यह देखने के लिए कि सीता अपनी परिस्थिति में कितनी दृढ़ और आत्मनिर्भर हैं।

 सीता का उत्तर:

माता सीता ने राम के कथन को सुनकर अपने आत्मसम्मान और प्रेम को व्यक्त किया। उन्होंने अग्निपरीक्षा देकर अपनी शुद्धता साबित की और राम के प्रति अपनी निष्ठा और प्रेम को सिद्ध किया।

राम का यह कथन न केवल एक राजा के कर्तव्यों और समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारियों को दर्शाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि उन्होंने अपनी पत्नी के आत्मसम्मान और स्वतंत्रता का पूरा सम्मान किया। यह प्रसंग रामायण की उन घटनाओं में से एक है जो आज भी हमें नैतिकता, धर्म और कर्तव्य का पाठ पढ़ाता है।

प्रसंग -बाल्मीकी रामायण से 

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