नई दिल्ली: वरिष्ठ पत्रकार केपी मलिक ने हाल ही में एक विवादास्पद बयान दिया है जिसमें उन्होंने कहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2024 के आम चुनावों में प्रधानमंत्री बनने से रोक सकता है। मालिक का यह बयान भारतीय राजनीति में हलचल मचा रहा है और इस पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।
केपी मलिक, जो भारतीय राजनीति और सामाजिक मुद्दों पर अपनी स्पष्ट राय के लिए जाने जाते हैं, प्रज्ञा मिश्रा से बात करते हुए इंटरव्यू में कहा कि आरएसएस की विचारधारा और नरेंद्र मोदी के बीच हाल के वर्षों में मतभेद बढ़े हैं। मलिक का मानना है कि आरएसएस, जो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का वैचारिक स्रोत माना जाता है, अब नरेंद्र मोदी की नीतियों और नेतृत्व शैली से असंतुष्ट है।
उन्होंने कहा, "आरएसएस हमेशा से ही संगठन के अनुशासन और सामूहिक नेतृत्व को महत्व देता आया है। नरेंद्र मोदी का व्यक्तिगत करिश्मा और उनका व्यक्तित्व केंद्रित नेतृत्व इस विचारधारा से मेल नहीं खाता।" मलिक के अनुसार, यह असंतोष आरएसएस के अंदर गहरे स्तर पर व्याप्त है और संगठन के कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि पार्टी और देश के हित में किसी नए चेहरे को आगे लाना चाहिए।
इस बयान के बाद बीजेपी और आरएसएस दोनों के ही प्रमुख नेताओं ने प्रतिक्रिया दी है। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "मालिक का बयान बेबुनियाद है और इसका कोई ठोस आधार नहीं है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं और उनकी लोकप्रियता अडिग है।"
वहीं, आरएसएस के प्रवक्ता ने भी इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "आरएसएस का काम संगठन का निर्माण और समाज की सेवा है। हम किसी भी राजनीतिक व्यक्ति या पद पर सीधा प्रभाव नहीं डालते। हमारी प्राथमिकता देश और समाज की सेवा है, न कि किसी व्यक्तिगत नेतृत्व का समर्थन या विरोध।"
मलिक का यह बयान ऐसे समय पर आया है जब 2024 का प्रधानमंत्री मिलने वाला हैं और विभिन्न राजनीतिक दल अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप दे रहे हैं। नरेंद्र मोदी, जिन्होंने 2014 और 2019 के चुनावों में बीजेपी को भारी बहुमत दिलाया था, एक बार फिर से प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं।
इस बयान ने भारतीय राजनीति में एक नया आयाम जोड़ दिया है और आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बयान का चुनावी राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है। वहीं, जनता और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच इस मुद्दे पर चर्चा और बहस का दौर भी शुरू हो गया है।