मनुष्य के जीवन में मृत्यु का संघर्ष अविवेकपूर्ण होता है। यह एक ऐसा प्राकृतिक घटना है जिसका कोई नियंत्रण नहीं होता। अनेक समाजों और धर्मों में मृत्यु के पीछे एक अनुपस्थिति को स्वीकार किया जाता है, जिसे आत्मा कहा जाता है। भारतीय साहित्य और धर्मशास्त्र में, आत्मा के विभिन्न पहलुओं को समझाने के लिए कई ग्रंथों में उल्लेख किया गया है, जैसे कि गरुण पुराण।
गरुण पुराण में आत्मा के विभिन्न रूपों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस पुराण के अनुसार, मनुष्य की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा कई रूपों में विभाजित हो जाती है, और उन्हें भगवान गरुण के सम्मुख अपने कर्मों की जांच के लिए प्रस्तुत होना पड़ता है। इस प्रक्रिया में, आत्मा के कर्मों का फल प्राप्त होता है और उसे उनके अनुसार उचित शिक्षा दी जाती है।
गरुण पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा के विभिन्न रूप होते हैं। उनमें से एक रूप है यमलोक में जाना। यमलोक एक अन्धकारमय स्थान होता है जहां आत्मा अपने पिछले कर्मों का फल भुगतती है। इसके बाद, आत्मा को धर्म और अधर्म के बीच भिन्न कर्मों के द्वारा अपने अनुभवों को समझने का अवसर मिलता है।
गरुण पुराण में वर्णित एक और रूप है प्रेतलोक का। प्रेतलोक एक अन्तर्दृष्टि का स्थान होता है जहां आत्मा अपने पिछले जीवन के अनुभवों को समझती है। यहां आत्मा को अपने परिवार और समाज के साथी को प्रेत रूप में अपनी दुखभाग्य प्रतीत होती है। यह स्थिति आत्मा को उसके अनुभवों से सीखने का अवसर देती है ताकि वह अपने आगामी जन्म में उन्नति कर सके।
गरुण पुराण में एक और रूप है गंधर्वलोक का। गंधर्वलोक एक स्वर्गीय स्थान होता है जहां आत्मा अपने पिछले कर्मों के आधार पर सुख या दुःख भोगती है। यहां आत्मा को भगवान की अनुभूति और आत्मा के सत्य स्वरूप की अनुभूति होती है। गंधर्वलोक में, आत्मा को स्वर्गीय आनंद का अनुभव होता है, लेकिन यह भी एक संवर्धन का स्थान होता है, जहां आत्मा को उच्चतम आध्यात्मिक सत्ता की ओर आग्रह किया जाता है।
गरुण पुराण में उल्लिखित एक और महत्वपूर्ण रूप है पितृलोक का। पितृलोक उन आत्माओं का स्थान होता है जो अपने पूर्वजों के यज्ञ और कर्मों का फल भोगने के लिए यहां प्रेषित किए जाते हैं। इस स्थान पर आत्मा को अपने पूर्वजों के श्राद्ध और तर्पण के माध्यम से शांति और सुख की प्राप्ति होती है।
गरुण पुराण के अनुसार, आत्मा को इन विभिन्न लोकों में जाने के बाद उसे अपने कर्मों के फल का अनुभव करने का अवसर मिलता है। यह उसके आगामी जन्म के लिए एक अवसर होता है ताकि वह उन्नति कर सके और अपने आत्मिक विकास में प्रगति कर सके।
गरुण पुराण का उल्लेख मरने के 24 घंटे के बाद आत्मा के घर लौटने के बारे में सीधे नहीं करता है, लेकिन यह मनुष्य के आत्मिक और धार्मिक अनुभवों के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए एक मार्गदर्शक ग्रंथ है। इस पुराण में वर्णित सिद्धांतों के आधार पर, आत्मा का प्रारंभिक संचार और उसका विविध अनुभव एक निरंतर प्रक्रिया है जो संसारिक जीवन के साथ जुड़ा होता है।
गरुण पुराण और अन्य वेदिक ग्रंथों में आत्मा के विभिन्न पहलुओं का विवेचन करके हम अपने अंदर की असीमित शक्तियों को समझ सकते हैं और आत्मा के अनंत जीवन का अनुभव कर सकते हैं। इस प्रकार, मरने के बाद आत्मा का घर लौटना एक नया प्रारंभिक होता है, जो हमें अनंत ज्ञान और आनंद की ओर ले जाता है।