2020-2021 का भारतीय किसानों का विरोध पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, छतीसगढ़ और करीब पूरे देश के किसानों द्वारा मुख्य रूप से 2020 में भारतीय संसद द्वारा पारित तीन कृषि कृत्यों के खिलाफ चल रहा विरोध है। किसान यूनियनों, द्वारा कृत्यों को ‘किसान विरोधी’ के रूप में वर्णित किया गया है, जबकि विपक्षी राजनेताओं के आरोप से ये कॉर्पोरेट्स की दया पर किसानों को छोड़ देगा।
आज का DNA बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि, आज हम भारत में पिछले 72 दिनों से चल रहे किसान आंदोलन के पीछे के असली चेहरे को एक्सपोज करने जा रहे हैं. इसका नाम है मोनमिंदर सिंह धालीवाल (Monminder Singh Dhaliwal), जो इस समय किसान आंदोलन (Farmers Protest) की आड़ में भारत को तोड़ने की खतरनाक साजिश रच रहा है और आप चाहें तो इसे अंतरराष्ट्रीय टुकड़े टुकड़े गैंग का पोस्टर बॉय भी कह सकते हैं.
जब एक पतंग हवा के साथ संतुलन बैठा लेती है तो उसके लिए भी ये यकीन करना मुश्किल होता है कि उसकी डोर अब भी किसी और के हाथ में है और आंदोलन कर रहे किसानों के साथ ऐसा ही हो रहा है.
आंदोलन में खालिस्तान की एंट्री
पिछले साल 26 नवंबर को जब दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन शुरू हुआ था तो हमने उसके अगले ही दिन आपको बता दिया था कि इसमें खालिस्तान की एंट्री हो चुकी है और पिछले दो दिनों में हमने आपको जितने भी दस्तावेज दिखाए, उनमें इसका साफ-साफ जिक्र है. लेकिन आज हम सिर्फ दस्तावेजों के साथ नहीं आए हैं, आज हम एक चेहरे के साथ आए हैं, जो ये बताता है कि किसान आंदोलन का मकसद कृषि कानूनों को रद्द कराना नहीं है. इसका मकसद खालिस्तान है. यानी आज अगर भारत सरकार, संसद द्वारा पास किए गए कृषि कानूनों को वापस ले भी ले और किसानों की सारी मांगें मान ले, तब भी ये आंदोलन (Farmers Protest) खत्म नहीं होगा और इसकी वजह है इस आंदोलन में खाद और पानी देने का काम कर रहे खालिस्तानी संगठन.
साजिश का पोस्टर बॉय मोनमिंदर सिंह धालीवाल
आज हम इन्हीं ताकतों को कड़ा जवाब देना चाहते हैं और इसके लिए सबसे पहले आपको कनाडा में बैठ कर भारत के खिलाफ खालिस्तान मूवमेंट चला रहे मोनमिंदर सिंह धालीवाल की बातें सुननी चाहिए, जो ये कह रहा है कि कृषि कानून अगर वापस भी हो जाएं तो भी ये आंदोलन चलता रहेगा और तब तक खत्म नहीं होगा जब तक पूरे पंजाब को खालिस्तान घोषित नहीं कर दिया जाता.
आपने स्कूल-कॉलेजों में पढ़ा होगा कि पृथ्वी भी सूर्य का चक्कर लगाते हुए 23.5 डिग्री के कोण पर झुकी रहती है और आज सच की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. सच तो अब भी विनम्रता के साथ झुका हुआ है लेकिन झूठ को अहंकार है कि वो जीत जाएगा और ये 135 करोड़ लोगों के भारत को सीधी और खुली चुनौती है.
किसान आंदोलन का मकसद
आज अगर भारत सरकार कृषि कानूनों को रद्द भी कर दे तो कल ये लोग जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग करेंगे. फिर नागरिकता संशोधन कानून को रद्द करने के लिए दबाव बनाएंगे और ये भी संभव है कि जेलों में बंद अर्बन नक्सल्स की रिहाई की भी मांग सरकार के सामने रख दी जाए और सोचिए, अगर सरकार ये सारी मांगें भी मान ले तो क्या ये आंदोलन खत्म हो जाएगा? नहीं, ये आंदोलन खत्म नहीं होगा और तब तक खत्म नहीं होगा, जब तक केंद्र से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार हट नहीं जाती. यानी ये आंदोलन मोदी विरोध के इर्द गिर्द ही सिमटा हुआ है और इसी वजह से आज किसानों का ये आंदोलन झूठ के हाइवे पर इतनी दूर जा चुका है कि इसका एपिसेंटर भारत से 12 हजार किलोमीटर दूर कनाडा में बन गया है. यहां हमारे देश को बदनाम करने की Power Point Presentation बनाई जा रही है और इसलिए हम चाहते हैं कि आज आप ये जानें कि जो बातें कल मैंने आपसे कही थीं, वही बातें कैसे आज सच साबित हो रही हैं.
Source – zeenews.india.com