Savarkar had promised political help to the British

सावरकर ने अंग्रेज़ों को राजनीतिक मदद का वादा किया था: पत्रकार अरुण शौरी ने किया बड़ा खुलासा

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हाल ही में, वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अरुण शौरी ने अपनी नई पुस्तक ‘द न्यू आइकॉन: सावरकर एंड द फैक्ट्स’ में विनायक दामोदर सावरकर के जीवन और उनकी राजनीतिक गतिविधियों पर महत्वपूर्ण खुलासे किए हैं। इस पुस्तक में, शौरी ने सावरकर द्वारा ब्रिटिश सरकार को राजनीतिक सहायता का वादा करने से संबंधित दस्तावेज़ों और तथ्यों को प्रस्तुत किया है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक नई दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।

पुस्तक के अनुसार, सावरकर ने ब्रिटिश अधिकारियों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए कई प्रयास किए। शौरी ने ब्रिटिश पुरालेखों और सावरकर के स्वयं के लेखन का विश्लेषण करते हुए दावा किया है कि सावरकर ने ब्रिटिश सरकार को राजनीतिक समर्थन देने का प्रस्ताव रखा था, ताकि वे अपनी सजा में राहत प्राप्त कर सकें। यह जानकारी भारतीय इतिहास के उस हिस्से पर प्रकाश डालती है, जो अब तक व्यापक रूप से चर्चा में नहीं था।

शौरी की पुस्तक में सावरकर की महात्मा गांधी की हत्या में कथित भूमिका पर भी चर्चा की गई है। लेखक ने सावरकर की विचारधारा और नाथूराम गोडसे के बीच संबंधों का विश्लेषण करते हुए यह दर्शाया है कि सावरकर की विचारधारा ने गोडसे को गांधीजी की हत्या के लिए प्रेरित किया। शौरी ने सावरकर के न्यायालय में दिए गए बयानों की गहन जांच करते हुए उन्हें ‘पूरी तरह मनगढ़ंत’ बताया है। उनका दावा है कि सावरकर के बयानों में सच्चाई का अभाव है, जो इस विवादास्पद विषय पर नई बहस को जन्म देता है।

पुस्तक की प्रकाशन तिथि 31 जनवरी 2025 निर्धारित की गई थी, लेकिन सावरकर समर्थकों के विरोध के कारण इसे एक दिन के लिए स्थगित कर 1 फरवरी 2025 को प्रकाशित किया गया। इस घटना ने पुस्तक की सामग्री और उसके प्रभाव पर सार्वजनिक और मीडिया का ध्यान आकर्षित किया।

अरुण शौरी की यह पुस्तक सावरकर की विरासत और उनके भारतीय राजनीति पर प्रभाव की गहन समीक्षा प्रस्तुत करती है। लेखक ने सावरकर के लेखन, ब्रिटिश पुरालेखों और अन्य ऐतिहासिक दस्तावेज़ों का विश्लेषण करते हुए यह निष्कर्ष निकाला है कि सावरकर ने ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग करने का प्रयास किया था। यह दावा सावरकर के राष्ट्रवादी छवि के विपरीत है और इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के लिए नए प्रश्न खड़े करता है।

शौरी की पुस्तक में सावरकर की हिंदुत्व विचारधारा पर भी आलोचनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। लेखक का मानना है कि सावरकर की विचारधारा ने भारतीय समाज में विभाजन और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया। उन्होंने सावरकर के लेखन और भाषणों का विश्लेषण करते हुए यह दर्शाया है कि उनकी विचारधारा ने हिंदू-मुस्लिम एकता को कमजोर किया और सांप्रदायिकता को प्रोत्साहित किया।

पुस्तक में सावरकर के जीवन के अन्य पहलुओं, जैसे कि उनकी साहित्यिक कृतियों, सामाजिक सुधारों और राजनीतिक गतिविधियों पर भी प्रकाश डाला गया है। शौरी ने सावरकर के योगदानों की सराहना करते हुए भी उनकी विवादास्पद गतिविधियों और विचारों की आलोचना की है, जिससे पाठकों को सावरकर के जीवन और कार्यों का संतुलित दृष्टिकोण प्राप्त होता है।

‘द न्यू आइकॉन: सावरकर एंड द फैक्ट्स’ के प्रकाशन के बाद, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में विभिन्न प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं। सावरकर के समर्थकों ने पुस्तक की आलोचना करते हुए इसे सावरकर की छवि को धूमिल करने का प्रयास बताया है, जबकि अन्य ने शौरी के शोध और निष्कर्षों की सराहना की है। इस पुस्तक ने सावरकर की विरासत पर एक नई बहस को जन्म दिया है, जो भारतीय इतिहास और राजनीति में उनकी भूमिका पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करती है।

अरुण शौरी की यह कृति न केवल सावरकर के जीवन और विचारों का विश्लेषण करती है, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आधुनिक राजनीति के संदर्भ में उनके प्रभाव का भी मूल्यांकन करती है। पुस्तक में प्रस्तुत तथ्यों और विश्लेषणों के माध्यम से, शौरी ने सावरकर की विरासत पर एक नई दृष्टि प्रदान की है, जो पाठकों को इतिहास के इस महत्वपूर्ण अध्याय पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करती है।

इस पुस्तक के माध्यम से, शौरी ने सावरकर के जीवन के उन पहलुओं को उजागर किया है, जो अब तक व्यापक रूप से अज्ञात या अनदेखे थे। यह कृति इतिहासकारों, शोधकर्ताओं और सामान्य पाठकों के लिए सावरकर के जीवन और उनके समय के राजनीतिक परिदृश्य को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन साबित हो सकती है।

अंततः, ‘द न्यू आइकॉन: सावरकर एंड द फैक्ट्स’ भारतीय इतिहास और राजनीति में सावरकर की भूमिका पर एक महत्वपूर्ण संवाद की शुरुआत करती है, जो आने वाले समय में और भी गहन अध्ययन और विमर्श का विषय बनेगी।

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