राजा महाराजा

राजा महाराजा अपनी 10-10 पत्नियों को खुश और संतुष्ट कैसे करते थे, ये रहस्य जानकर हैरान रह जायेंगे

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प्राचीन भारतीय इतिहास में राजा-महाराजाओं की बहुविवाह प्रथा और उनकी रानियों के साथ संबंधों की कहानियाँ सदियों से लोगों के बीच चर्चा का विषय रही हैं। विशेष रूप से, यह सवाल उठता है कि इतने अधिक संख्या में पत्नियों को वे कैसे खुश और संतुष्ट रखते थे। इस लेख में, हम ऐतिहासिक तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर इस रहस्य से पर्दा उठाने का प्रयास करेंगे।

बहुविवाह की प्रथा और उसके कारण

प्राचीन काल में, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक कारणों से राजा-महाराजाओं में बहुविवाह प्रचलित था। विभिन्न राज्यों और साम्राज्यों के बीच गठबंधन मजबूत करने के लिए राजाओं ने कई विवाह किए। इसके अलावा, वंश वृद्धि और उत्तराधिकारी सुनिश्चित करने के लिए भी अनेक पत्नियाँ रखना सामान्य माना जाता था।

रानियों की संतुष्टि के लिए विशेष प्रबंध

इतिहासकारों के अनुसार, राजा अपनी रानियों की खुशी और संतुष्टि के लिए विशेष प्रबंध करते थे। उदाहरण के लिए, पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह की 365 रानियाँ थीं, जिनमें से 10 प्रमुख थीं। उनकी रानियों के लिए भव्य महल बनाए गए थे, जहाँ उनकी सभी आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाता था। रानियों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए चिकित्सा विशेषज्ञों की टीम भी महलों में ही रहती थी।

महाराजा भूपिंदर सिंह का अनोखा तरीका

महाराजा भूपिंदर सिंह के बारे में एक रोचक किस्सा प्रसिद्ध है। कहते हैं कि उनके महल में रोज़ाना 365 लालटेनें जलाई जाती थीं, जिन पर प्रत्येक रानी का नाम लिखा होता था। जो लालटेन सुबह सबसे पहले बुझती, महाराजा उसी रानी के साथ रात बिताते थे। इस प्रकार, वे अपनी सभी रानियों के साथ समय बिताने का प्रयास करते थे।

भोजन और अन्य शौक

महाराजा भूपिंदर सिंह अपने शाही शौक के लिए भी मशहूर थे। उनके भोजन में 150 से अधिक व्यंजन परोसे जाते थे, और उनकी थाली सोने की होती थी, जिसमें जवाहरात जड़े होते थे। मुख्य रानियों की थाली सोने की, जबकि अन्य की चांदी, कांसा या पीतल की होती थी। रात में महाराजा 25 पेग ब्रांडी का सेवन करते थे।

अन्य राजाओं की प्रथाएँ

अन्य राजाओं के संदर्भ में, चालुक्य वंश के सोमेश्वर तृतीय का उदाहरण लिया जा सकता है। उनका मानना था कि विभिन्न प्रकार के मांस का सेवन करने से वे अपनी रानियों को संतुष्ट रख सकते हैं। उनके प्रिय भोजन में तले हुए कछुए और भुने हुए काले चूहे शामिल थे।

प्राचीन काल में राजा-महाराजाओं ने अपनी अनेक रानियों को खुश और संतुष्ट रखने के लिए विभिन्न तरीकों और प्रथाओं का पालन किया। इनमें से कई प्रथाएँ आज के समय में असामान्य लग सकती हैं, लेकिन उस समय की सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना में वे सामान्य मानी जाती थीं। इतिहास के इन पहलुओं को समझना हमें उस दौर की जीवनशैली और मान्यताओं के बारे में गहन दृष्टिकोण प्रदान करता है।

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