बवासीर

बवासीर हो या भगन्दर, यह पौधा करेगा जड़ से ठीक, जानें उपयोग विधि

Health

बवासीर (पाइल्स) और भगन्दर (फिस्टुला) दो बेहद दर्दनाक बीमारियाँ हैं, जो व्यक्ति के दैनिक जीवन को कठिन बना सकती हैं। इन रोगों से पीड़ित लोग अक्सर दर्द, जलन और असहजता महसूस करते हैं। हालांकि, आयुर्वेद में इन समस्याओं के लिए प्रभावी उपचार मौजूद हैं। एक ऐसा ही पौधा है अर्शोघ्न (Calotropis gigantea), जिसे हिंदी में आक, अकवन या मदार के नाम से जाना जाता है। इस औषधीय पौधे का उपयोग आयुर्वेद में सदियों से किया जा रहा है और यह बवासीर एवं भगन्दर के उपचार में प्रभावी माना जाता है।

अर्शोघ्न (आक) पौधा क्या है?

अर्शोघ्न एक झाड़ीनुमा औषधीय पौधा है, जो भारत, नेपाल, श्रीलंका और अन्य एशियाई देशों में पाया जाता है। इसके पत्ते, जड़, फूल और दूध (लेटेक्स) औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, इस पौधे में एंटी-इंफ्लेमेटरी (सूजन कम करने वाले), एंटी-माइक्रोबियल (जीवाणुरोधी) और दर्द निवारक गुण होते हैं, जो बवासीर और भगन्दर जैसी समस्याओं को ठीक करने में सहायक हो सकते हैं।

बवासीर और भगन्दर में अर्शोघ्न (आक) का उपयोग

बवासीर और भगन्दर ऐसी स्थितियाँ हैं, जो गुदा (एनस) क्षेत्र में दर्द, सूजन और रक्तस्राव जैसी समस्याएँ उत्पन्न कर सकती हैं। अर्शोघ्न का उपयोग इन लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है। इसके विभिन्न उपयोग निम्नलिखित हैं:

1. आक के पत्तों का रस

आक के ताजे पत्तों का रस निकालकर प्रभावित क्षेत्र पर लगाने से सूजन और दर्द में राहत मिलती है। यह प्रक्रिया दिन में दो बार करने से अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।

2. पत्तियों का लेप

आक की पत्तियों को पीसकर उसमें हल्दी मिलाकर एक औषधीय लेप तैयार करें। इसे प्रभावित स्थान पर लगाने से संक्रमण नहीं फैलता और घाव तेजी से भरता है। हल्दी में मौजूद एंटीसेप्टिक गुण इसे और अधिक प्रभावी बनाते हैं।

3. आक के दूध का सेवन

आक की जड़ों से प्राप्त दूध (लेटेक्स) को आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह अनुसार निर्धारित मात्रा में पानी के साथ मिलाकर सेवन किया जा सकता है। यह आंतरिक रूप से बवासीर के लक्षणों को कम करने में सहायक होता है। हालांकि, अधिक मात्रा में सेवन से दुष्प्रभाव हो सकते हैं, इसलिए इसे विशेषज्ञ की देखरेख में ही लिया जाना चाहिए।

4. धूप में सुखाए गए पत्तों का पाउडर

सूखे हुए आक के पत्तों को पीसकर उनका चूर्ण तैयार करें। इस चूर्ण को सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से बवासीर और भगन्दर में राहत मिलती है।

अर्शोघ्न (आक) के अन्य स्वास्थ्य लाभ

आयुर्वेद में आक के अन्य उपयोग भी बताए गए हैं:

त्वचा रोगों में राहत: आक का उपयोग खुजली, फंगल इंफेक्शन और एक्जिमा जैसी समस्याओं में किया जाता है।

सूजन कम करने में सहायक: आक की पत्तियों से बना लेप घुटनों, जोड़ों और मांसपेशियों की सूजन को कम करने में मदद कर सकता है।

घाव भरने में मददगार: आक का रस या लेप घावों को जल्दी भरने में सहायक होता है।

पाचन क्रिया में सुधार: सही मात्रा में सेवन करने पर यह कब्ज और अपच जैसी समस्याओं से राहत दिला सकता है।

सावधानियाँ: आक का उपयोग करते समय ध्यान देने योग्य बातें

  • बिना चिकित्सीय सलाह के उपयोग न करें।
  • गर्भवती महिलाएँ और बच्चे इसका सेवन न करें।
  • आक का दूध (लेटेक्स) त्वचा के लिए हानिकारक हो सकता है, इसे हाथ में लगाने से बचें।
  • आक के पत्तों और जड़ों की अधिक मात्रा का सेवन करने से पेट में दर्द, उल्टी और अन्य दुष्प्रभाव हो सकते हैं।

विशेषज्ञ की राय: आयुर्वेद में अर्शोघ्न की भूमिका

आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार, अर्शोघ्न (आक) का सही मात्रा और विधि से उपयोग बवासीर और भगन्दर के उपचार में बेहद प्रभावी साबित हो सकता है। लेकिन, किसी भी आयुर्वेदिक औषधि का उपयोग करने से पहले योग्य चिकित्सक से परामर्श लेना बेहद जरूरी है।

आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार अर्शोघ्न के लाभ

चरक संहिता में आक को औषधीय पौधों की सूची में शामिल किया गया है।
सुश्रुत संहिता में आक के उपयोग से जुड़ी विस्तृत जानकारियाँ दी गई हैं।
आधुनिक वैज्ञानिक शोधों में भी इसके औषधीय गुणों को प्रमाणित किया गया है।

आयुर्वेद में अर्शोघ्न (आक) का महत्व

बवासीर और भगन्दर जैसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों के लिए अर्शोघ्न (आक) पौधा एक प्राकृतिक और प्रभावी उपाय हो सकता है। इसका उपयोग प्राचीन काल से आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता रहा है, जो इसकी प्रभावशीलता को दर्शाता है। हालांकि, इसका उपयोग केवल विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए, ताकि किसी भी संभावित दुष्प्रभाव से बचा जा सके।

स्रोत एवं संदर्भ

📌 नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (NCBI)आयुर्वेदिक पौधों पर शोध
📌 आयुर्वेद हेल्थ रिसर्च सेंटरबवासीर और भगन्दर के आयुर्वेदिक उपचार
📌 आयुष मंत्रालय, भारत सरकारआयुर्वेद में औषधीय पौधों की भूमिका

यह लेख केवल शैक्षिक और सूचना उद्देश्यों के लिए लिखा गया है। किसी भी उपचार को अपनाने से पहले योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।

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