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देश का प्रमुख चिकित्सा संस्थान एम्स विवादों में घिरा: फर्जी प्रमाणपत्र, खरीद घोटाला और मंत्रालय की सख्ती

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देश के प्रमुख चिकित्सा संस्थान, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), हाल के दिनों में कई गंभीर आरोपों के घेरे में है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एम्स के निदेशक से इन आरोपों पर जांच रिपोर्ट मांगी है, लेकिन प्रबंधन की ओर से अभी तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है।

फर्जी ओबीसी प्रमाणपत्र का मामला

एम्स गोरखपुर के कार्यकारी निदेशक प्रो. डॉ. जीके पाल पर आरोप है कि उन्होंने अपने बेटे डॉ. ओरो प्रकाश पाल के लिए फर्जी ओबीसी नॉन-क्रीमी लेयर (एनसीएल) प्रमाणपत्र बनवाकर माइक्रोबायोलॉजी विभाग में पीजी पाठ्यक्रम में प्रवेश दिलाया। शिकायत के अनुसार, यह प्रमाणपत्र 27 अप्रैल को एम्स पटना के निदेशक आवास के पते से जारी किया गया था, जिसमें उनकी और उनकी पत्नी की वार्षिक आय आठ लाख रुपये से कम दिखाई गई, जबकि वास्तविकता में यह 80 लाख रुपये से अधिक है। शिकायत के बाद, डॉ. ओरो प्रकाश पाल ने चार दिन बाद ही सीट छोड़ दी।

स्वास्थ्य मंत्रालय की जांच और कार्रवाई

इन आरोपों के बाद, स्वास्थ्य मंत्रालय ने तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया, जिसने प्रो. डॉ. जीके पाल को पद के दुरुपयोग का दोषी पाया। जांच रिपोर्ट में सिफारिश की गई कि उन्हें तुरंत आधिकारिक जिम्मेदारियों से मुक्त किया जाए। स्वास्थ्य मंत्रालय ने 7 अक्टूबर को डॉ. पाल को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसका उन्होंने 10 अक्टूबर को जवाब दिया। हालांकि, इस विषय पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से टिप्पणी करने से इनकार किया है, क्योंकि मामला विचाराधीन है।

विजिलेंस टीम की जांच

फर्जी ओबीसी प्रमाणपत्र के मामले की जांच के लिए विजिलेंस की टीम एम्स गोरखपुर पहुंची। टीम ने ओपीडी, एडमिन कार्यालय, स्टैंड और कैंटीन सहित विभिन्न स्थानों का निरीक्षण किया और संबंधित व्यक्तियों से पूछताछ की। शिकायतकर्ता डॉ. गौरव गुप्ता से भी टीम ने संपर्क किया और उन्हें बातचीत के लिए बुलाया। इसके अलावा, टीम ने ओपीडी में सीनियर रेजीडेंट और एमबीबीएस छात्रों से भी पूछताछ की।

दस्तानों की खरीद में अनियमितता

एम्स पर सर्जिकल दस्तानों की खरीद में भी अनियमितताओं के आरोप लगे हैं। आरोप है कि एम्स प्रशासन ने सस्ती दरों पर उपलब्ध दस्तानों को नजरअंदाज करते हुए ऊंचे दाम पर उनकी आपूर्ति की अनुमति दी, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचा। स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले पंद्रह महीनों में दो बार एम्स को इस खरीद को लेकर पत्र लिखा, लेकिन निदेशक की ओर से कोई जवाब नहीं मिला।

आरोपों पर निदेशक की प्रतिक्रिया

प्रो. डॉ. जीके पाल ने इन सभी आरोपों को निराधार बताया है। उनका कहना है कि एम्स गोरखपुर में कुछ लोग काम नहीं करना चाहते और फर्जीवाड़े में लिप्त हैं। उन्होंने कहा कि जब उनके फर्जीवाड़े उजागर हो गए हैं, तो वे इस तरह के आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी बेटी की नियुक्ति जनरल कैटेगरी में फोरेंसिक मेडिसिन में हुई है और ज्वाइनिंग से पहले ही उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय को इसकी जानकारी दी थी।

स्वास्थ्य मंत्रालय की सख्ती

स्वास्थ्य मंत्रालय ने एम्स में चल रहे इन विवादों को गंभीरता से लिया है। मंत्रालय ने एम्स के निदेशक से इन मामलों पर विस्तृत जांच रिपोर्ट मांगी है। मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि किसी भी प्रकार की अनियमितता या भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

देश के प्रमुख चिकित्सा संस्थान एम्स में इस प्रकार के आरोप न केवल संस्थान की साख को प्रभावित करते हैं, बल्कि चिकित्सा क्षेत्र में जनता के विश्वास को भी कमजोर करते हैं। यह आवश्यक है कि इन मामलों की निष्पक्ष और त्वरित जांच हो, ताकि दोषियों को उचित सजा मिल सके और संस्थान की प्रतिष्ठा बहाल हो सके। साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भविष्य में इस प्रकार की अनियमितताओं की पुनरावृत्ति न हो।

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