उत्तर प्रदेश की राजनीति में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर अक्सर अपने बेबाक बयानों को लेकर चर्चा में रहते हैं। हाल ही में उनका ‘पीला गमछा’ बयान सुर्खियों में छाया हुआ है। उन्होंने अपने समर्थकों से कहा था कि यदि वे किसी थाने या सरकारी दफ्तर में जाते हैं, तो पीला गमछा पहनकर जाएं, जिससे अधिकारी सम्मानपूर्वक खड़े होकर उनकी बात सुनेंगे और काम तुरंत होगा। लेकिन बलिया जिले में हुई एक घटना ने इस बयान पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घटना में पुलिस ने कथित रूप से एक ‘विधानसभा प्रभारी’ को शौचालय में ले जाकर पट्टा से पीटा और उनका पीला गमछा भी छीन लिया।
ओमप्रकाश राजभर का ‘पीला गमछा’ बयान: शक्ति प्रदर्शन या जनता का आत्मविश्वास बढ़ाने की कोशिश?
ओमप्रकाश राजभर ने मऊ जिले में आयोजित एक जनसभा के दौरान अपने समर्थकों से कहा था, “यदि आपको अपने किसी काम के लिए थाने या सरकारी दफ्तर जाना पड़े, तो सफेद गमछे की जगह पीला गमछा पहनिए। इससे अधिकारी आपको सम्मान देंगे और आपके कार्य को प्राथमिकता से करेंगे।” यह बयान राजभर के समर्थकों के आत्मविश्वास को बढ़ाने के उद्देश्य से दिया गया था, ताकि वे किसी भी प्रशासनिक दफ्तर में बिना किसी भय के जा सकें।
बलिया में ‘विधानसभा प्रभारी’ के साथ पुलिस की कार्रवाई
बलिया जिले में हाल ही में एक ऐसी घटना सामने आई, जिसने इस बयान के प्रभाव को लेकर बहस छेड़ दी है। रिपोर्ट्स के अनुसार, एक ‘विधानसभा प्रभारी’ को पुलिस ने शौचालय में ले जाकर पट्टा से मारा और उनका पीला गमछा भी फेंक दिया। यह घटना ओमप्रकाश राजभर के बयान के विपरीत नजर आती है, जहां अधिकारी न केवल सम्मान देने में असफल रहे, बल्कि उन्होंने राजनीतिक कार्यकर्ता के साथ अपमानजनक व्यवहार भी किया।
‘पीला गमछा’ की राजनीति और प्रशासन पर इसका प्रभाव
उत्तर प्रदेश में कई राजनीतिक दलों के अपने प्रतीक और रंग होते हैं, जिनसे उनके कार्यकर्ता और समर्थक पहचाने जाते हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का भगवा, समाजवादी पार्टी (सपा) का लाल-हरा और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का नीला रंग इसका उदाहरण हैं। इसी तरह, सुभासपा का पीला गमछा उनके समर्थकों की पहचान बन गया है।
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या केवल एक रंग या प्रतीक से प्रशासन पर प्रभाव डाला जा सकता है? बलिया की घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि केवल प्रतीकात्मकता से सरकारी अधिकारी या पुलिस प्रभावित नहीं होती। यह भी दर्शाता है कि प्रशासन किसी भी राजनीतिक दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं है।
चच्चा OP राजभर कहे थे कि – "पीला गमछा पहन कर कहीं चले जाओ, अफ़सर कुर्सी छोड़कर खड़ा हो जाएगा और काम करेगा"
उधर बलिया में “विधानसभा प्रभारी” को शौचालय में ले जाकर पट्टा से मार मार कर हवाई जहाज बना दिया पुलिस ने….प्रभारी साहब का पीला गमछा भी उतार कर फेंक दिया 😆😆@oprajbhar pic.twitter.com/UezSNxevCE
— कलम की चोट (@kalamkeechot) March 6, 2025
प्रशासन की प्रतिक्रिया और राजनीतिक दबाव
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि कानून-व्यवस्था बनाए रखना उनकी प्राथमिकता है और वे किसी भी राजनीतिक दल या व्यक्ति के दबाव में आकर अपने कर्तव्यों से समझौता नहीं करेंगे। बलिया की घटना के बाद पुलिस ने स्पष्ट कर दिया कि वह किसी राजनीतिक दल की पहचान या प्रतीक को विशेषाधिकार नहीं देगी। हालांकि, यह भी सच है कि प्रशासन को निष्पक्ष और पारदर्शी होना चाहिए ताकि किसी भी दल या समुदाय को भेदभाव का सामना न करना पड़े।
ओमप्रकाश राजभर की प्रतिक्रिया
बलिया की घटना के बाद ओमप्रकाश राजभर ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि यह घटना उनके समर्थकों के मनोबल को गिराने के लिए की गई एक सोची-समझी साजिश हो सकती है। उन्होंने सरकार से इस घटना की निष्पक्ष जांच की मांग की है और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही है।
राजनीति और पुलिस प्रशासन का टकराव
उत्तर प्रदेश में राजनीति और प्रशासन के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है। पहले भी कई बार देखा गया है कि जब भी कोई राजनीतिक दल सत्ता से बाहर होता है, तो उनके कार्यकर्ताओं को प्रशासन द्वारा निशाना बनाया जाता है। वहीं, सत्ता में रहते हुए उनके कार्यकर्ता अधिक प्रभावशाली नजर आते हैं। यह घटना भी इसी राजनीतिक संघर्ष का एक उदाहरण हो सकती है।
जनता की राय: क्या ‘पीला गमछा’ वास्तव में प्रभावी है?
जनता के बीच इस मुद्दे पर मिश्रित प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल रही हैं। कुछ लोगों का मानना है कि राजभर का बयान उनके समर्थकों के आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए था, जबकि कुछ का कहना है कि इससे प्रशासन में बेवजह दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है। वहीं, बलिया की घटना ने यह साबित कर दिया कि केवल किसी विशेष रंग का गमछा पहनने से सरकारी अधिकारी या पुलिस का रवैया नहीं बदलेगा।
ओमप्रकाश राजभर का ‘पीला गमछा’ बयान उनके समर्थकों को एकजुट करने और उनमें आत्मविश्वास भरने की रणनीति थी, लेकिन बलिया की घटना ने इस बयान की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घटना से स्पष्ट होता है कि प्रशासन केवल राजनीतिक प्रभाव में आकर काम नहीं करता, बल्कि उसकी प्राथमिकता कानून और व्यवस्था बनाए रखना है।
हालांकि, यह भी महत्वपूर्ण है कि पुलिस और प्रशासन जनता के साथ निष्पक्ष व्यवहार करें और किसी भी राजनीतिक दबाव में आए बिना नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करें।